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मगर...जिंदगी की खातिर किनारा जिंदगी से किया था...

पता था यूँ ही तन्हा होगा... सफ़र तेरे बिन चाहे जहाँ होगा.. मंजिले मिला करेंगी..तमाम ही मगर जो न होगा.. वो तेरा निशां होगा जानते बुझते फैसला जुदा होने का लिया था... कि तुझसे कही पहले रिश्ता मंजिलो से किया था... था इल्म होगी अधूरी... जिंदगी जो भी तेरे बिना होगी.. मगर...जिंदगी की खातिर किनारा जिंदगी से किया था... हश्र था मालुम कि.... क्या होगा... मंजिलो पे कुरबां इक रिश्ता होगा... तुझ बिन जिंदगी की... सूरत तो थी मालूम हाँ पर जो वादा था खुद से वो... पूरा होगा ..आलोक मेहता...

दिल को कितनी उम्मीद थी तेरे लौट आने की...

दिल को कितनी उम्मीद थी तेरे लौट आने की... हुआ एहसास.. जब कोई सूरत ना रही.. तुझे लौटाने की... ..आलोक मेहता...

two liners - पसंदीदा शागिर्द को ही देता हैं... उस्ताद कड़े सबक....

पसंदीदा शागिर्द को ही देता हैं... उस्ताद कड़े सबक.... यही सोच... खुदा, तेरा हर इम्तिहान दिए जा रहा हूँ मैं... आलोक मेहता...

जिस सिम्त.. जिंदगी तुझसे जुड़ी..

मीलों लम्बा सफ़र... चंद ही कदमो में सिमट गया.. जिस सिम्त.. जिंदगी तुझसे जुड़ी... आसान हो गयी... आलोक मेहता... 10.01.2012

"आलोक" तय हर बार मंजिले... कर जाते हैं...

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क्या कहते हैं... हम.. क्या कर जाते हैं... झूठी शान को उनसे भी लड़ जाते हैं... उठने की चाहत में यार आसमा सा... कितना गहरे हम गिर जाते हैं... जुडी रहती हैं सिर्फ उन्ही से आस अपनी कौल से अपने सिर्फ वही मुकर जाते हैं... किस तरह इन्तहा ये सफ़र-ऐ-उल्फत हो.. पहलू में उनके चलो अब बिखर जाते हैं... "आलोक" हर बार सुनते है सफ़र मुमकिन नहीं... "आलोक" तय हर बार मंजिले... कर जाते हैं... आलोक मेहता...

पहचान वो उस एक अजनबी से मेरी...

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याद हैं तेरा आना जिंदगी में मेरी... फिर लौट जाना जिंदगी से मेरी.... हैं यकीं.. न हुआ हैं.. और न होगा.. करम बढ़ के कोई ..तिश्नगी से मेरी.. बनी रहती तो जिंदगी बन ही जाती... पहचान वो उस एक अजनबी से मेरी... ..आलोक मेहता... 05.01.2012