मगर...जिंदगी की खातिर किनारा जिंदगी से किया था...
पता था यूँ ही तन्हा होगा... सफ़र तेरे बिन चाहे जहाँ होगा.. मंजिले मिला करेंगी..तमाम ही मगर जो न होगा.. वो तेरा निशां होगा जानते बुझते फैसला जुदा होने का लिया था... कि तुझसे कही पहले रिश्ता मंजिलो से किया था... था इल्म होगी अधूरी... जिंदगी जो भी तेरे बिना होगी.. मगर...जिंदगी की खातिर किनारा जिंदगी से किया था... हश्र था मालुम कि.... क्या होगा... मंजिलो पे कुरबां इक रिश्ता होगा... तुझ बिन जिंदगी की... सूरत तो थी मालूम हाँ पर जो वादा था खुद से वो... पूरा होगा ..आलोक मेहता...