तू नहीं सही.. तेरे संग फिर भी जिंदगी बसर करूँगा मैं....
रह रह कर तेरी और बढ़ पड़ते हैं कदम मेरे... मेरी उम्मीद से जुदा, तेरे नक्श मुझमे बाकी हैं ऐ सनम मेरे तू कही मौजूद हैं मेरी तन्हाई की गुरुर में मेरे अकेलेपन क दंभ में, मेरे अहं के सुरूर में दावा था मेरा की...तू.. मुझमे शामिल न होगा... तेरा कोई भी ख्याल...किसी सूरत... मुझमे दाखिल न होगा... मेरे दिल-ओ-दिवार के दरवाजे... इस तरह बंद होंगे पहरे रहेंगे तमाम, तेरी नफरत के पाबंद होंगे मगर फिर किस तरह.. तू मुझमे जीता हैं... किस तरह हारा हूँ मैं... और तू किस तरह जीता हैं... क्यों तुझे पाने की आरजू अब भी उठती हैं... क्या हैं वजह.. धड़कन बन तू अब भी दिल में धडकती हैं.... साँसे किस तरह तेरे नाम से चढ़ती उतरती हैं... बेचैनिया तेरे ख्याल से अब भी क्यों बढती हैं... कैसा भ्रम था मेरे कि... तुझे भुला दूंगा मैं... बचपना था कि तेरा.. हर नक्श मिटा दूंगा मैं.... जहन में ताज़ा हैं... तेरे साथ का लम्हा हर... तेरे संग याद हैं बस... भूला वो मिलो का सफ़र... मंजिलो का पता नहीं... राह कि ना कोई फ़िक्र... गैरों कि न बात कोई... न कोई अपनों का जिक्र....