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"आलोक" दीदार बस देकर वो मर्ज बढ़ा देते हैं..

दिल्लगी में मेरी हर बात उड़ा देते हैं हर शिकायत पे वो बस मुस्कुरा देते हैं गुफ्तगू-ऐ-दिल इस तरह होती हैं पलकें होले से बस झुका देते हैं आईने पाबंद हैं उसकी खूबसूरती के यूँ... यक-ब-यक उसका अक्स दिखा देते हैं हैं नहीं इनकार शौक-ऐ-उफ्लत से उनको ... खवाबो में आ-आकर वो जता देते हैं... उनके लिए फकत अठखेलियाँ ही हैं सदके जो अपने जिंदगी करा देते हैं... तिमारदारी ठहरी जिस रोज से सर उनके "आलोक" दीदार बस देकर वो मर्ज बढ़ा देते हैं...

पलकों के किवाड़...

एक अरसे बाद सांझ ढलते ही . दिल फिर से बेचैन होने लगा हैं... कभी इधर कभी उधर घबरा कर देखता हैं... हवाओं के संग खिड़की से एक साए की आहट आती हैं... करीने से बिछाए गयी यादो की चादर मेरे जेहन की सिलवटो को तरसती हैं... मगर थके हार कदम तन्हाई के बिस्तर को जाते ठिटक उठते हैं ... मैं थक कर कुर्सी पर बैठ जाता हूँ बोझिल पलके खुली रहने को संघर्षरत हैं.. .. बीते पलो की झपकी लगते ही हडबडाकर जाग उठता हु.... आज फिर से कोई ख्वाब में आने वाला हैं.. कि एक अरसे बाद आज फिर कोई पलकों के किवाड़ खटखटाता हैं... आलोक मेहता...

कोई पलकों के किवाड़ खटखटाता हैं...

एक अजब सा भरम भरमाता हैं... कोई मुझे तेरी याद दिलाता हैं.. खूब हैं यकी कि जा चुका हैं तू... सुबह कौन फिर गाल थपथपाता हैं.... उदास दिन ठहर जाता हैं माथें पर ... तू चूम कर चेहरे की शिकन मिटाता हैं... वो कुछ कहे तुझ सा ही लगता हैं.... हर शख्स जो मुझे बहलाता हैं... नींद आये ये ख्वाबो का तकाजा हैं... कोई पलकों के किवाड़ खटखटाता हैं... आलोक वो शख्स जिसे भुलाना था मुझे... गाहे बग्हाए हर मोड़ मुझे मिल जाता हैं... ..आलोक मेहता.. ek ajab sa bharam bharmata hain... koi mujhe teri yaad dilataa hain.. khub hain yaki ki jaa chuka hain tu.. subah kaun phir gaal thapthapta hain... udaas din theh'ar jaata hain maathe par... tu chum kar chehre ki shikan mitata hain.. wo kuch kahe tujhsa hi lagta hain.. har shaks jo mujhe behlaata hain... neend aaye ye khwabo ka takaaza hain.. koi palko ke kiwaad khatkatata hain... aalok wo shaks jise bhulaana tha mujhe... gaahe bagaahe har mod mujhe mil jata hain... ...aalok mehta...