जीता हूँ तेरी... तनहाइयों को भी.. लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप - नवंबर 17, 2011 ख़ामोश तेरी अंगडाइयों को भी.. नींद तरसती जम्हाईयों को भी... भांप लेता हूँ सभी बेचैनियाँ जीता हूँ तेरी... तनहाइयों को भी... ...आलोक मेहता... 16.11.2011.. 7.05 pm और पढ़ें
एक पल नहीं लगता लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप - नवंबर 17, 2011 अरसा लग जाता हैं उनसे मिलने में जिनसे मिलने में एक पल नहीं लगता... ...आलोक मेहता.. और पढ़ें
चोट फिर भी बेहद गहरी.. लगी हैं मुझको... लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप - नवंबर 10, 2011 तेरा पत्थर चूक गया .. यूँ तो.. मेरे सर का निशाना.... ग़म न कर... चोट फिर भी बेहद गहरी.. लगी हैं मुझको... ..आलोक मेहता... from old creations... [17.10.2008] और पढ़ें
जो कहने थे.. पर नहीं कहे तूने.... लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप - नवंबर 10, 2011 दर्द सिर्फ उन लफ्जों का नहीं...जो तेरे लबो से निकले... टीस उन अल्फाजो की भी बहुत हैं.. जो कहने थे.. पर नहीं कहे तूने.... ...आलोक मेहता... और पढ़ें