जीता हूँ तेरी... तनहाइयों को भी..
ख़ामोश तेरी अंगडाइयों को भी..
नींद तरसती जम्हाईयों को भी...
भांप लेता हूँ सभी बेचैनियाँ
जीता हूँ तेरी... तनहाइयों को भी...
...आलोक मेहता...
16.11.2011.. 7.05 pm
नींद तरसती जम्हाईयों को भी...
भांप लेता हूँ सभी बेचैनियाँ
जीता हूँ तेरी... तनहाइयों को भी...
...आलोक मेहता...
16.11.2011.. 7.05 pm
बहुत-बहुत प्यारी रचना.....
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या ।
जवाब देंहटाएंbehad khoobsurat...
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