तेरी मेरी का फर्क नहीं...हर जिंदगानी मेरी हैं....
हर शख्स से मेरे यार यहाँ.. निभ जानी मेरी हैं... तेरी मेरी का फर्क नहीं...हर जिंदगानी मेरी हैं.... बात जो सताती हो... लाख तेरी सही.. मगर बल जिसपे ठहरे हैं... वो पेशानी मेरी हैं... वो कि जिसका.. हर एक किरदार ही हैं... नायक मैं खुद खलनायक जिसमे ...वो कहानी मेरी हैं... कितने ही धोखे खाता रहा.. उफ़ न की मगर... कब संभलेगा दिल बता .. ये हैरानी मेरी हैं. मैं लौट आया दरवाजे से ... उससे फिर मिले बगैर... जिस शख्स से एक उम्र से पहचान पुरानी मेरी हैं.. 'आलोक' वो बदल जाये.. तू तो तू ही रहना... बाकी जो, लुट जाये... बच जाये जो निशानी मेरी है... आलोक मेहता.. 08.10.2011 8.30 p.m.