आ तय कर ले फिर सलीका-ऐ-गुफ्तगू क्या रहे
क्या रही वजह की यूँ खफा रहें
फासले अपने क्यू दरमियाँ रहे
मुझे भी गर तुझसे होता गिला नहीं
तुझे भी न हो शिकवा तो कैसा रहे
दूरियां में इजाफा न हो खामखाँ
दूर जाने का फैसला.. न बेजा रहे
गर जाना हमेशा के लिए जाना
लौट आने का न कोई रास्ता रहे
मेरी आँख से अपनी तस्वीर भी तू लेता जा
कि चुभता रहे... जो कोई ख्वाब अधूरा रहे
यूँ ही अपनी दस्ताने... फिर गर टकराए कही
आ तय कर ले... फिर सलीका-ऐ-गुफ्तगू क्या रहे
चुरा भी न लेना.. नजरे, कही तू मुझको देखकर
नजरो पर देखना कही न... ये अदब बुरा रहे
हैं उसकी भी आरजू कि "आलोक" तुझसे क्या कहे
अब के अगर मिलना तो अपना होने का न शुबा रहे
....आलोक मेहता...
फासले अपने क्यू दरमियाँ रहे
मुझे भी गर तुझसे होता गिला नहीं
तुझे भी न हो शिकवा तो कैसा रहे
दूरियां में इजाफा न हो खामखाँ
दूर जाने का फैसला.. न बेजा रहे
गर जाना हमेशा के लिए जाना
लौट आने का न कोई रास्ता रहे
मेरी आँख से अपनी तस्वीर भी तू लेता जा
कि चुभता रहे... जो कोई ख्वाब अधूरा रहे
यूँ ही अपनी दस्ताने... फिर गर टकराए कही
आ तय कर ले... फिर सलीका-ऐ-गुफ्तगू क्या रहे
चुरा भी न लेना.. नजरे, कही तू मुझको देखकर
नजरो पर देखना कही न... ये अदब बुरा रहे
हैं उसकी भी आरजू कि "आलोक" तुझसे क्या कहे
अब के अगर मिलना तो अपना होने का न शुबा रहे
....आलोक मेहता...
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