meri mayyat pe dekho hujum na lagne paaye... gham ka maara hu main... bhid se ghabraata hu... syah bejaan chehre par koi parda karna hoga... ek muddat hui,uske ashq k daag chupata hu khyal rahe mehboob karib na aa jaye lash k meri... ki uski maujudgi mein main yaar aksar ji jaata hu... badi hi khamoshi se dekhna ki janaja ye nikle mera ki gham ka maara hu main... bhid se ghabraata hu... ....Alok Mehta...
पेशानी किसी शिकन हो, वो मिटाता हैं ऐसे आवारा बादल कोई, प्यास बुझाता हो जैसे किफायत से खर्चते हैं वो प्यार की बातें गरीब चांदी के सिक्के बचाता हो जैसे मिन्नत भी है, लहजे में तारी शिकायत भी रूठा वो कोई यार मनाता हो जैसे गुफ्तगू कोई हो वो इस अंदाज में करे… 'आलोक' दुआ में अलफ़ाज़ सजाता हो जैसे…. ...आलोक मेहता.... 17.10.2013
चंद मेथी के बीज और वो नाजुक उँगलियाँ तेरी क्या था मालुम, रिश्तों की जड़े यूँ गहरा जायेंगी सुकून मिलता था जो अपने पल दो पल के साथ में न था मालूम, यूँ उम्र भर का ये संग ठहरा जायेंगी
कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी
जवाब देंहटाएं"यूँ तो मैं अकेला गिर कर भी संभल सकता हूँ
तू अगर साथ दे तो दुनिया भी बदल सकता हूँ"