जब अँधेरा स्याह गहरा जाता हैं... तेरा नाम जुबा पर आ जाता हैं... अब भी बहारें खिल उठती हैं... चमन में जब तू छा जाता हैं... तेरी क्या वो तो तू ही जाने मेरी भी तू ही बता जाता हैं... मंजर-ऐ-दिल बंजर हो जब आँखों से कुछ बहा जाता हैं... उल्फत का बोसा कैसे निगले... नफरत जो रोज चबा जाता हैं.. तेरा नुकसान न होने दूंगा... जाये जो मेरा नफा जाता हैं.... आलोक दिल में वो अब हैं... जो दिल से चला जाता हैं... ...आलोक मेहता....