तेरा नुकसान न होने दूंगा... जाये जो मेरा नफा जाता हैं....
जब अँधेरा स्याह गहरा जाता हैं...
तेरा नाम जुबा पर आ जाता हैं...
अब भी बहारें खिल उठती हैं...
चमन में जब तू छा जाता हैं...
तेरी क्या वो तो तू ही जाने
मेरी भी तू ही बता जाता हैं...
मंजर-ऐ-दिल बंजर हो जब
आँखों से कुछ बहा जाता हैं...
उल्फत का बोसा कैसे निगले...
नफरत जो रोज चबा जाता हैं..
तेरा नुकसान न होने दूंगा...
जाये जो मेरा नफा जाता हैं....
आलोक दिल में वो अब हैं...
जो दिल से चला जाता हैं...
...आलोक मेहता....
तेरा नाम जुबा पर आ जाता हैं...
अब भी बहारें खिल उठती हैं...
चमन में जब तू छा जाता हैं...
तेरी क्या वो तो तू ही जाने
मेरी भी तू ही बता जाता हैं...
मंजर-ऐ-दिल बंजर हो जब
आँखों से कुछ बहा जाता हैं...
उल्फत का बोसा कैसे निगले...
नफरत जो रोज चबा जाता हैं..
तेरा नुकसान न होने दूंगा...
जाये जो मेरा नफा जाता हैं....
आलोक दिल में वो अब हैं...
जो दिल से चला जाता हैं...
...आलोक मेहता....
MANJRE DIL BANJAR HO JAB,AANKHO SE KUCH BAHA JATA HAE....
जवाब देंहटाएंKHOOBSURAT SI GAZAL
Behad Shukriya Dr. Mahendra ji...
हटाएंउल्फत का बोसा कैसे निगले...
जवाब देंहटाएंनफरत जो रोज चबा जाता हैं..
वाह लाजवाब शेर है आपकी इस गज़ल का ...
Sarahana k liye Behad shukriya.. Digambar ji...
हटाएंजब अँधेरा स्याह गहरा जाता हैं...
जवाब देंहटाएंतेरा नाम जुबा पर आ जाता हैं...
ये दिल की लगी है इसे अंधेरों से बचाए रखना
नाम जुबां पे हो जब उजालों को सजाये रखना .....
andhero se bachanae ki tanha surat hain ye..
हटाएंuska naam ek in labo par sajaaye rakhna..
Harkirat 'Heer' ji... Aapke blog par aane se behad protsaahan mila...
behad behad shukriya....