चंद मेथी के बीज और वो नाजुक उँगलियाँ तेरी
क्या था मालुम, रिश्तों की जड़े यूँ गहरा जायेंगी
सुकून मिलता था जो अपने पल दो पल के साथ में
न था मालूम, यूँ उम्र भर का ये संग ठहरा जायेंगी
लिंक पाएं
Facebook
X
Pinterest
ईमेल
दूसरे ऐप
टिप्पणियाँ
इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट
-
पेशानी किसी शिकन हो, वो मिटाता हैं ऐसे आवारा बादल कोई, प्यास बुझाता हो जैसे किफायत से खर्चते हैं वो प्यार की बातें गरीब चांदी के सिक्के बचाता हो जैसे मिन्नत भी है, लहजे में तारी शिकायत भी रूठा वो कोई यार मनाता हो जैसे गुफ्तगू कोई हो वो इस अंदाज में करे… 'आलोक' दुआ में अलफ़ाज़ सजाता हो जैसे…. ...आलोक मेहता.... 17.10.2013
एक बार लिखा था किसी के लिए कभी..... "ख्वाबो ख्यालो में हसीं खूब लगता था... बहुत आम सा लगा रूबरू मिल जाना तेरा..." मगर अब तुमसे मिल कर कहता हूँ.... "हर बार मिल कर इसके माने बदल देते हो.... हसीं अब हसीं.. और हसीं ..... लगता हैं.... " ...आलोक मेहता....
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें