चंद मेथी के बीज और वो नाजुक उँगलियाँ तेरी
क्या था मालुम, रिश्तों की जड़े यूँ गहरा जायेंगी
सुकून मिलता था जो अपने पल दो पल के साथ में
न था मालूम, यूँ उम्र भर का ये संग ठहरा जायेंगी
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पेशानी किसी शिकन हो, वो मिटाता हैं ऐसे आवारा बादल कोई, प्यास बुझाता हो जैसे किफायत से खर्चते हैं वो प्यार की बातें गरीब चांदी के सिक्के बचाता हो जैसे मिन्नत भी है, लहजे में तारी शिकायत भी रूठा वो कोई यार मनाता हो जैसे गुफ्तगू कोई हो वो इस अंदाज में करे… 'आलोक' दुआ में अलफ़ाज़ सजाता हो जैसे…. ...आलोक मेहता.... 17.10.2013
अब आज अभी से इक नयी शुरुआत करे.... बात चुभती हो कोई... तो चलो बात करे... दूर तक चलना शिकवो का भी ठीक नहीं... मिटा दे चलो इन्हें... ख़त्म मामलात करे... था करार सदियों का ...लम्हों भी चला न वो... जवाब मांगे भी तो क्या... क्या सवालात करे... क्या रहेंगे गिले.. जो रूबरू हो पाए हम.... "आलोक" मुझसे गर कहे ... जो औरो से तू बात करे.... आलोक मेहता...
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