पेशानी किसी शिकन हो, वो मिटाता हैं ऐसे आवारा बादल कोई, प्यास बुझाता हो जैसे किफायत से खर्चते हैं वो प्यार की बातें गरीब चांदी के सिक्के बचाता हो जैसे मिन्नत भी है, लहजे में तारी शिकायत भी रूठा वो कोई यार मनाता हो जैसे गुफ्तगू कोई हो वो इस अंदाज में करे… 'आलोक' दुआ में अलफ़ाज़ सजाता हो जैसे…. ...आलोक मेहता.... 17.10.2013
चंद मेथी के बीज और वो नाजुक उँगलियाँ तेरी क्या था मालुम, रिश्तों की जड़े यूँ गहरा जायेंगी सुकून मिलता था जो अपने पल दो पल के साथ में न था मालूम, यूँ उम्र भर का ये संग ठहरा जायेंगी
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंShukriya Kumar...
हटाएंआस और विश्वास से भाव, सुन्दर शेर, बधाई.
जवाब देंहटाएंजेन्नी जी... उत्साह बढ़ने के लिए बेहद शुक्रिया....
हटाएंhmm bilkul sahi kaha..sundar shayri
जवाब देंहटाएंwelcome to माँ मुझे मत मार
awsome...
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