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जीता हूँ तेरी... तनहाइयों को भी..

ख़ामोश तेरी अंगडाइयों को भी.. नींद तरसती जम्हाईयों को भी... भांप लेता हूँ सभी बेचैनियाँ जीता हूँ तेरी... तनहाइयों को भी... ...आलोक मेहता... 16.11.2011.. 7.05 pm

एक पल नहीं लगता

अरसा लग जाता हैं उनसे मिलने में जिनसे मिलने में एक पल नहीं लगता... ...आलोक मेहता..

चोट फिर भी बेहद गहरी.. लगी हैं मुझको...

तेरा पत्थर चूक गया .. यूँ तो.. मेरे सर का निशाना.... ग़म न कर... चोट फिर भी बेहद गहरी.. लगी हैं मुझको... ..आलोक मेहता... from old creations... [17.10.2008]

जो कहने थे.. पर नहीं कहे तूने....

दर्द सिर्फ उन लफ्जों का नहीं...जो तेरे लबो से निकले... टीस उन अल्फाजो की भी बहुत हैं.. जो कहने थे.. पर नहीं कहे तूने.... ...आलोक मेहता...