स्त्री ...
स्त्री एक अद्भुत विषय एक सम्पूर्ण रचना इसने क्या क्या खोया इसने क्या अस्तित्व पाया कई लोगो को सुना विचार एकत्र किये सबसे सुना की.... क्या हैं ये ? क्या होगी सबसे सटीक परिभाषा इसकी स्त्री सबने चाहा बतलाये क्या हैं अनबुझ पहेली सी उलझती जाती हैं एक शुन्य सी संकुचित अपना अस्तित्व छुपाये कही और अनंत सी विस्तृत होकर सारी सृष्टि कभी समाये हुए स्त्री... सब हैं हैरान परेशान आखिर कैसे व्यक्त करे किसी को ममता की देवी लगी माँ का भव्य रूप देखा किसी ने तो त्याग की मूरत और कहा किसी ने अबला है ये औरत मगर फिर भी कौन सी संज्ञा कौन सा विशेषण ठीक बैठेगा कुछ भी तो ठीक नहीं लगता सभी एकल रूप तो कहते हैं मगर सम्पूर्णता वाली वो बात कहा हैं स्त्री... कौन हैं कैसे पता लगे चारो तरफ अब शोर हैं सबके विचार टकरा रहे हैं मुझे दुःख हैं किसी को सही परिभाषा नहीं मालुम सब अपनी अपनी व्याख्या पर दृढ़ता से अडे हैं और ये मेरी आधी अधूरी रचना इन सब लोगो के एकमत होने की प्रतीक्षा में हैं.... स्त्री.... सब उस अबला के लिए द्रवित हैं मैं कह पड़ता हूँ... मैं सहमत हु मगर पूर्ण रूप से नहीं क्या जरुरी है एक इसी रूप में पहचाना जाये इसे ...