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ढके जो बादल.. तो क्या आसमा नहीं??

ना सही तू मेरी दुनिया.. मेरी दास्तान जाहिर माना तेरा निशा नहीं... मगर न दिखे तो सूरज नहीं.. ढके जो बादल.. तो क्या आसमा नहीं?? ...आलोक मेहता...

मेरी पहली कहानी... इत्तेफाक.....

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[image courtesy : google images] इत्तेफाक..... उफ़... आज फिर से देर हो गयी... ये बिलकुल आखिर वक़्त पे निकलने की आदत कब बदलेगी मेरी.. तेजी से कदम बढ़ता हुआ.. चंद हाँफते कदमो के साथ मैं अपनी कोचिंग क्लास में दाखिल होता हूँ... वो वही बैठी हुई हैं.. अपनी जगह पर.. सबकी नजरे दरवाजे की तरफ उठती हैं...उसकी भी... हम दोनों की निगाहे टकराती हैं और दोनों मुस्कुरा उठते हैं..वो शायद शिस्टाचार के नाते.. और मेरी तो आप अब तक समझ ही गये होंगे... फिर वक़्त रेंगने लगा... और करीब १ घंटे की क्लास मेरे वक़्त के हिसाब से जाने कब खतम हुई... बाहर आये और एक हलकी मुस्कराहट उसे देकर.. देर तक उसे जाते फिर देखता रहा... यही एक क्रम रोज चलता था... बिना नागा बिना किसी छुट्टी के.. पहली ही नजर में उससे एक रिश्ता हो गया था... उससे पहली मुलाक़ात मेरी जिंदगी के चंद सबसे खुबसूरत लम्हों में से एक हैं... फिर भी अब तक उससे जाहिर तौर पे कुछ खास नहीं हो पाया... अवि... सुभाष ने मुझे आवाज दी... शायद सुभाष को भी वो पसंद हैं....उसने ही हम दोनों को मिलवाया था... वैसे तो सुभाष मेरा बहुत चहेता दोस्त हैं.. मगर फिर भी उसका उसके बारे में