संदेश

मई, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निगाहों निगाहों सवाल करना... सुनना खुद को जवाबो में...

निगाहों निगाहों सवाल करना... सुनना खुद को जवाबो में... इश्क अपना वैसा हैं.. पढ़ा था जैसा किताबो में... आलोक मेहता...

क्षितिज पे भी जमी का ये फलक न हो सका...

तुझे क्यों रहा गुमान कि तेरा हो सकूँगा मैं... अपना ही जब मैं अब तलक न हो सका मरासिम हैं ये फकत, बात जान ले... क्षितिज पे भी जमी का ये फलक न हो सका... कहा था तुझे.. कि ये मुमकिन ही नहीं रखू किसी का ख्याल फितरत में शामिल ही नहीं... लाख चाहू तो भी तो ये नहीं मेरे बस में... नादानी जिसे कहते मोहब्बत. मेरी मंजिल ही नहीं... ...आलोक मेहता...

वो आया सफ़र में.. और हैरान कर गया...

चित्र
अपने याद आने का सामान कर गया .. जाते वक़्त वो ये एहसान कर गया .. मैं तो गुजर ही जाता बीते लम्हों कि तरह... वो आया, मुझे एक दास्तान कर गया हमसफ़र न कोई होगा.. सोच गुम था मैं... वो आया सफ़र में.. और हैरान कर गया... ..आलोक मेहता...

और तुम्हारे मरने की भी अभी तक कोई खबर नहीं आई हैं...

जाते वक़्त कितना तडपे थे हम लगता था दुनिया बस ख़त्म हो रही हैं.... मुझे लगा था तुझसे दूर हो कर... टूट जाऊंगा मैं... साँस न ले पाउँगा... दम घुट जाएगा... आंखे बाहर को निकल आएगी. ये कमबख्त दिल सिने में सिकुड़ कर दफ़न हो जायेगा आवाज निकलने कि आरजू में भीतर ही घुट के रह जाएगी और आखिर तड़प कर दम तोड़ तुंगा मैं.. मगर प्यार के बाकी सब ख्यालो कि तरह ये भी एक अजीब ही ख्याल था... देखो मैं अभी भी जिन्दा हूँ और तुम्हारे मरने की भी अभी तक कोई खबर नहीं आई हैं... ...आलोक मेहता...