संदेश

अक्तूबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तेरी मेरी का फर्क नहीं...हर जिंदगानी मेरी हैं....

हर शख्स से मेरे यार यहाँ.. निभ जानी मेरी हैं... तेरी मेरी का फर्क नहीं...हर जिंदगानी मेरी हैं.... बात जो सताती हो... लाख तेरी सही.. मगर बल जिसपे ठहरे हैं... वो पेशानी मेरी हैं... वो कि जिसका.. हर एक किरदार ही हैं... नायक मैं खुद खलनायक जिसमे ...वो कहानी मेरी हैं... कितने ही धोखे खाता रहा.. उफ़ न की मगर... कब संभलेगा दिल बता .. ये हैरानी मेरी हैं. मैं लौट आया दरवाजे से ... उससे फिर मिले बगैर... जिस शख्स से एक उम्र से पहचान पुरानी मेरी हैं.. 'आलोक' वो बदल जाये.. तू तो तू ही रहना... बाकी जो, लुट जाये... बच जाये जो निशानी मेरी है... आलोक मेहता.. 08.10.2011 8.30 p.m.

जिंदगी अब रह गयी... बस एक रोजगार....

एक नौकरीपेशा व्यक्ति की व्यथा... अपनी की न फुर्सत... तेरी से क्या सरोकार.. जिंदगी अब रह गयी... बस एक रोजगार.... ************************************************ गैर की हैं मंजिले.. गैर के रस्ते तैयार... गैर की जंग लडू..ले गैर के हथियार... आलोक मेहता...

वादा हैं..मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...

चित्र
[image courtesy : google images] माना वक़्त नहीं.. और.. बाकी कई काम सही... राह भी हैं.. लम्बी.. और.. ढलती ये शाम सही... अंजाम से पहले ..खुद को.. ना ..नकारुंगा.. वादा हैं..मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा... जीत के बनेंगी पायदान..चट्टानें मुश्किलों की .. हिम्मतो से बदलूँगा..लकीरे इन हथेलियों की... कि हस्ती.. अब अपनी..हर कीमत सवारूँगा वादा हैं.. मेरा.. कि .. मैं नहीं हारूँगा... चाहए कितनी ही स्याह.. मायूसी नजर आती हो... हौसलों कि चांदनी चाहे.. मद्धम हुई जाती हो... कर मजबूत खुद को.. वक़्त-ऐ-मुफलिसी गुजारूँगा... वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा... आफताब नहीं तो क्या..ऑंखें उम्मीद से रोशन हैं.. ज़माने को नहीं.. तो क्या.. मुझे भरोसा हरदम हैं... पाउँगा मंजिल ख्वाबो की.. चाँद जमी उतारूंगा... वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा... हार हो या जीत..मेरी हस्ती कोई फर्क ना आ जायेगा कि 'आलोक' हर हाल यार.. शख्स वही रह जाएगा... इन फिजूल पैमाइशो पर अब.. खुद को ना उतारूंगा... वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा... आलोक मेहता.. [2009]