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wo kya gaya...meri jindagi, tu to budhi ho gayi...

tujh mein bhi khub shokhi hua karti thi kabhi... wo kya gaya...meri jindagi, tu to budhi ho gayi... unke haat se jo giri to dil chir gayi mera... khanjar se bhi tej tuti hui chudi ho gayi... na tha pata yu bewajah sadio ke faasle honge do kadam kya bade...tay milo ki doori ho gayi. andaja kya rehta ki surat ye dunia kya rahegi... uski judai bhi is waaste behad jaruri ho gayi... aalok wo gaya to laga anjaam ko pahuchi... sadio ki ye jindagi lamho mein hi puri ho gayi... ....Aalok Mehta.... 13-01-2010 तुझ में भी क्या खूब शोखी हुआ करती थी कभी वो क्या गया... मेरी जिंदगी तू तो बूढी हो गयी उनके हाथ से जो गिरी तो दिल चीर गयी मेरा खंजर से भी तेज उनकी टूटी हुई चूड़ी हो गयी न था पता यूँ बेवजह सदियों के फासले होंगे दो कदम क्या बढे... तय मीलों की दूरी हो गयी अंदाजा क्या रहता की सूरत-ऐ-दुनिया क्या रहेगी उसकी जुदाई भी इस वास्ते बेहद जरुरी हो गयी 'आलोक' वो गया तो लगा ये अंजाम को पहुंची सदियो की जिंदगी... लम्हों में पूरी हो गयी... ...आलोक मेहता..

आज इश्क हैं उसे..कल क्या जाने.. क्या तबियत होगी..

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Image Courtesy : tooft.com खैर तू जो न मिले... तो फिर भी जी लेंगे हम... डर तो ये हैं.. गर हो तू हासिल...क्या सूरत होगी... मेरे अधूरे ख्वाबो के दरमियाँ क्यूकर हो बसर तेरा आखिर किस तरह पूरी यहाँ तेरी महलो की जरुरुँत होगी आज कहती हैं तू... हर हाल साथ निभाएगी मेरा... फितूर-ऐ-इश्क जो उतरेगा तेरा.. मेरी बड़ी फ़जियत होगी ऐ-दिल-इ-'आलोक' अच्छा हैं दूर ही चले जाना उसका... आज इश्क हैं उसे..कल क्या जाने.. क्या तबियत होगी... ...आलोक मेहता... khair tu jo na mile, to phir bhi ji hi lenge hum.. dar to ye hain.. gar ho tu haasil... kya surat hogi... . mere adhure khawbo k darmiyan qkar ho basar tera.. akhir kis tarah puri yaha teri mehlo ki jarurat hogi... aj kehti hain.. har haal mein saath nibhayegi mera... fitoor-e-ishq jab utrega tera, meri badi fajihat hogi... e-dil-e-"aalok", accha hain... door hi chale jaana unka... aaj ishq hain unhe.. kal kya jaane... kya tabiyat hogi.... ..aalok mehta...
tere intjaar mein poshida.. ek "kaash" hu main... safar-e-jindagi hu.. kya.. fakat teri 'talash' hu main...... aalok mehta.. तेरे इन्तजार में पोशीदा............... एक 'काश' हूँ मैं... सफ़र-ऐ-जिंदगी हूँ...क्या?, फकत तेरी तलाश हूँ मैं ...आलोक मेहता...

सच कहूँ.. अक्स मेरा अब वाकई में खुबसूरत लगता हैं...

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कब ही तेरे बारे सोचा मैंने खुद से ही फुर्सत कहा मिली मुझे तेरी आँखों की नमी बेफिजूल सी लगती रही तवज्जो दू कभी तेरे भी ग़म को ऐसी जरुरत कभी महसूस ही नहीं की मैंने ... अपनी जिंदगी में तेरी मौजदगी का एहसास ही नहीं किया... बस अपने ख्वाबो के पीछे बढ़ता गया तू खुद में घुटती रही मगर एक भी शिकवा कभी किया हो मुझे याद नहीं आता... हमेशा ही ख़ामोशी से मेरा हाल पता कर दबे पाँव लौट जाना आदत सी हो गयी थी तेरी.. जैसे खुद की कोई हस्ती न हो .. मगर आज जब तू किसी और की हो चुकी हैं तो मालुम हुआ ... कि वो तो मैं था जिसकी हस्ती अब कोई मायने नहीं रहे... अब समझ में आता हैं... मेरा वजूद निखर के आता था... क्यूंकि तूने अपने वजूद को मुझ में समां रखा था तू एक आफताब थी जिसने मुझे अपना नूर बक्शा था... और मैं माहताब होकर तेरी रौशनी को अपना समझ बैठा था तू तो फिर पुरनूर हो गयी मुझसे अलग होकर... मगर अब जब तू नहीं तो अमावास के चाँद सा स्याह मैं लगता हूँ... अपने जिस वजूद का गुमान था मुझे उसे ही इन अंधेरो में रोज समेटता हूँ आज इन तन्हाइयो में तेरी नमी अपनी आँखों म