पेशानी किसी शिकन हो, वो मिटाता हैं ऐसे
आवारा बादल कोई, प्यास बुझाता हो जैसे
किफायत से खर्चते हैं वो प्यार की बातें
गरीब चांदी के सिक्के बचाता हो जैसे
मिन्नत भी है, लहजे में तारी शिकायत भी
रूठा वो कोई यार मनाता हो जैसे
गुफ्तगू कोई हो वो इस अंदाज में करे…
'आलोक' दुआ में अलफ़ाज़ सजाता हो जैसे….
...आलोक मेहता....
17.10.2013
अच्छा लिखते हो ......
जवाब देंहटाएंNice
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