गुफ्तगू जो हुई... दरिया-ऐ-उल्फत उफान आया
कल एक मुद्दत के बाद उसका पैगाम आया
उस हसी के लबो पर, बलफ्ज़ मेरा नाम आया
दोनों जानिब 'चुप' जो रहती तो किस तरह बढती
गुफ्तगू जो हुई... दरिया-ऐ-उल्फत उफान आया
खैर यूँ भी रही.. कि, रुख पर पर्दा बराबर गिरा रहा
वरना यहाँ उनकी झलक दिखी.. यहाँ तूफ़ान आया
हमसफ़र मेरे सफ़र के... यूँ तो वही रहे, फिर भी
सब चेहरे बदल गए कि ऐसा भी एक मकाम आया
खुशियों कि जागीर उनकी भी किस्मत थी, लेकिन
... जाने क्यू हिस्से आशिकों के.. दर्द-ओ-ग़म तमाम आया
नाकाम आशिको का.. किसी बज्म जब कभी, जिक्र छिड़ा
हैरां रहा "आलोक"... फेरहिस्त जब रकीब का भी नाम आया
... आलोक मेहता....
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