रूहों से जुदा...इंसानों से वास्ता हैं..

गर तुम कहो कि अलग अलग हैं... जो हमारा खुदा हैं...
मैं कहूँगा मंजिल हैं एक.. बस अपना यार, रस्ता... जुदा हैं....

गर तुम कहोगे फर्क हैं इंसानों में... जो मजहब ने बनाये हैं....
मैं कहूँगा फूल हैं सब इक गुलसिता के...बस रंग, जुदा हैं...

गर तुम कहोगे अपना धर्म छोड़ मेरा अपनाओगे तुमे...
मैं कहूँगा.. तेरी हैं पहचान ये.. संभाल रख इसे जो तुझमे, छुपा हैं...

गर तुम कहोगे... किसने पाया खुदा को.. वो शायद हकीकत नहीं...
मैं कहूँगा... तलाश मेरी जारी रहेगी.. पाने को उसको, जो... गुमशुदा हैं...

गर तुम कहोगे कि... कर्मकांड, प्रार्थना नमाजो में पा लिया उसको...
मैं कहूँगा... किसी मजलूम के आंसुओ में देखो... वो अब भी, पोशीदा हैं...


गर तुम कहोगे "आलोक" हैं नास्तिक कही या फिर काफिर ही हैं वो...
मैं कहूँगा.. उसका अलग ही फलसफा... रूहों से जुदा...इंसानों से वास्ता हैं..

....आलोक मेहता....

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

gham ka maara hu main... bhid se ghabraata hu...

मेथी के बीज