खो जाए तो फिर हासिल... ये सौगात नहीं होती


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खो जाए तो फिर हासिल... ये सौगात नहीं होती
इश्क अंजाम को आए तो फिर शुरुआत नहीं होती...

कभी होती थी सिर्फ एक उसकी ही बात...
अब बस एक उसकी ही बात नहीं होती...

सामने पड़ जाए तो राहे मैं बदल दूँ...
चंद कदम भी अब वो साथ नहीं होती...

बारहा नाकाम हैं कोशिशे दूर रहने की.
नहीं कोई मोड़..जहा मुलाक़ात नहीं होती...

मिल गया कोई.. कोई फिर हैं साथ उसके...
पहले सी मोहब्बत हासिल हजरात नहीं होती..

आलोक उल्फत गयी..मगर कोई तो खुश हैं....
मुझ सी सिसकती उसकी कोई रात नहीं होती...

..आलोक मेहता...

टिप्पणियाँ

  1. आलोक उल्फत गयी..मगर कोई तो खुश हैं....
    मुझ सी सिसकती उसकी कोई रात नहीं होती..वाह.... बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति.....

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