ये बातें तेरी मेरी...





कहाँ की कहाँ पहुँच जाती हैं.....
ये बातें तेरी मेरी....

ले परवाज़ आसमां छू आती हैं...
ये बातें तेरी मेरी...

एक दूजे से खूब मिलाती हैं...
ये बातें तेरी मेरी...

सुबहो-शाम का फर्क मिटाती हैं...
ये बातें तेरी मेरी...

खवाब-ओ- ख्यालात महकाती हैं...
ये बातें तेरी मेरी....

गिरे कोई.. उसे उठाती हैं...
ये बातें तेरी मेरी...

अजनबी... तुझे अपना बताती हैं....
ये बातें तेरी मेरी...

चाय की चुस्कियों का स्वाद बढ़ाती हैं..
ये बातें तेरी मेरी...

दायरा अपनी सोच का बढ़ाती हैं...
ये बातें तेरी मेरी...

और क्या कहे परत दर परत जिंदगी बनाती हैं...
ये बातें तेरी मेरी....

आलोक मेहता...

06042012

टिप्पणियाँ

  1. चाय की चुस्कियों का स्वाद बढ़ाती हैं..
    ये बातें तेरी मेरी...

    बेजोड़ रचना ..बधाई स्वीकारें
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए बेहद शुक्रिया नीरज जी...

      हटाएं
  2. कहाँ की कहाँ पहुँच जाती हैं.....
    ये बातें तेरी मेरी....

    ले परवाज़ आसमां छू आती हैं...
    ये बातें तेरी मेरी...

    चाय की चुस्कियों का स्वाद बढ़ाती हैं..
    ये बातें तेरी मेरी...

    दो दिलों को खूब मिलाती हैं
    ये बातें तेरी मेरी...

    बहुत सुन्दर रचना... हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना तक आने एवं सराहने के लिए शुक्रिया कुमार जी...

      हटाएं
  3. अजनबी... तुझे अपना बताती हैं....
    ये बातें तेरी मेरी...
    बहुत सुन्दर रचना,हार्दिक बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  4. "अजनबी तुझे अपना बताती है
    ये बातेँ तेरी मेरी "

    हर बात की शुरुआत एक छोटी सी बात से ही होती है। और कभी कभी वही बात ज़िँदगी की सबसे प्यारी बात बन जाती है। बहुत अच्छा लिखते हो आलोक। मानना पड़ेगा कि मन से लिखते हो। बहुत अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं

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