बड़ा ही खूबसूरत... वो सरकार दीखता हैं...






नजरो के शीशो के पार दीखता हैं....
बड़ा ही खूबसूरत... वो सरकार दीखता हैं...

न गुफ्तगू ही रही.. न कोई पहचान का तजुर्बा...
फिर भी मेरे फ़साने का... अहम किरदार दीखता हैं

लाख ही चेहरे गुजरे भले निगाहों से मेरी....
देखा जब दिल में... वही हर बार दीखता हैं....

ज़माने भर से टकरा जाये ये कूबत हैं इसकी....
दिल उसके ही आगे... बस लाचार दीखता हैं...

यु तो खूब रुलाया उसने कतरा कतरा हमे...
क्यों अब रोयेगा... वो जार जार दीखता हैं.....

ज़माने बदलने को तकाज़े... तेरे ही बहुत थे...
अब शक्सियत से मेरी... क्यों शर्मसार दीखता हैं..

टूटना बिखरना किस्से पुराने सब हुए....
ख्वाब हर एक अब... साकार दीखता हैं...

आलोक खूब रहा उससे नफरत का सिलसिला....
मोहब्बत का हमें जिसमे.. अंबार दीखता हैं...


आलोक मेहता...


१२.०४.२०१२... १२:१३ p .m .

टिप्पणियाँ

  1. आज शुक्रवार
    चर्चा मंच पर
    आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||

    charchamanch.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छे अच्छे शेर हुए हैं. आशापूर्ण भाव...

    टूटना बिखरना किस्से पुराने सब हुए....
    ख्वाब हर एक अब... साकार दीखता हैं...

    दाद स्वीकारें.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरती से अपने भावो को उकेरा है .......बधाई*****

    जवाब देंहटाएं
  4. Bahut hi sundar panktiya hum aapki likhawat mai dekhte hai.

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

    http://madan-saxena.blogspot.in/
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    जवाब देंहटाएं

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