कि ये खता... मेरी न थी...


तेरी निगाहों का था तकाजा
कि ये खता... मेरी न थी...
इजहार-ऐ-इश्क जो यूँ हुआ..
हरगिज़ रज़ा... मेरी न थी...
मगर अब जो ये हुआ...
क्या इल्तजा.. तेरी न थी..
तेरे भी हिस्से थी तनहाइयाँ.
ये फकत सजा... मेरी न थी...


आलोक मेहता...

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