तो... दरमियान फासला न इतना ज्यादा होता...


क्या चाहता हूँ तुझसे.. गर... ज़रा भी मुझे अंदाजा होता...
तो सच कहता हूँ... दरमियान फासला न इतना ज्यादा होता...

आलोक मेहता...

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही अच्छी... जितने ही कम शब्द उतनी ही गहराई....

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सोचा फिर ये जाना मैंने
    तुझसे रिश्ता बस यूँ ही बनाया था शायद

    जवाब देंहटाएं
  3. हो जाते हैं कुछ रिश्ते बनकर बेमायने भी...
    कि हर राह को मंजिल मिले... जरुरी तो नहीं...


    shukriya shephali ji... :) aur acchi panktiya.... pasand aayi...

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

gham ka maara hu main... bhid se ghabraata hu...

मेथी के बीज