क्या हैं कि झूठ में अपना कोई स्वाद नहीं होता...

सच के साथ रखना जरा झूठ का भी हिस्सा...
खालिस सच किसी से अब बर्दाश्त नहीं होता....

जब भी गुजरा हूँ मैं तेरी यादो से होकर....
ख्याल यही आया..ये गुजरना काश नहीं होता....

चाशनी लहजे की अब जुबाँ में बसा सब रखते हैं....
क्या हैं कि झूठ में अपना कोई स्वाद नहीं होता....

आलोक मेहता...

टिप्पणियाँ

  1. झूठ जो बोले... कोई, तो... संग चाशनी... लहजे की रखे....
    क्या हैं कि... झूठ का अपना कभी कोई स्वाद नहीं होता..

    आलोक मेहता...

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  2. खालिस सच किसी से अब बर्दाश्त नहीं होता
    सुन्दर प्रस्तुति ।

    आभार ।।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह...
    कमाल के शेर आलोक जी...
    बधाई.

    अनु

    जवाब देंहटाएं

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gham ka maara hu main... bhid se ghabraata hu...

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